कहानी बड़ी सुहानी

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(1) कहानी

वास्तविक सौंदर्य

एक बार एक राहगीर यात्रा करने के कारण थक गया! अत: उसने इधर- उधर नज़र दौड़ा कर देखा कि कहीं कोई उपयुक्त स्थान मिल जाएं, जहां रुककर वह कुछ समय के लिए विश्राम कर सके! एकाएक उसकी दृष्टि सामने एक आश्रम पर जाकर ठहर गई! वह संत सुकरात का आश्रम था! पथिक सोचने लगा, यदि यहां कुछ दिन ठहरने का अवसर मिल जाए तो कितना अच्छा हो! मै भी सत्संग- प्रवचनों का लाभ उठा सकूंगा! यही सोचकर वह संत सुकरात के पास पहुंचा! सुकरात ने तुरन्त आज्ञा दे दी और उस व्यक्ति को ठीक अपने सामने वाले कमरे में ठहरा दिया!
एक दिन राहगीर अपने कमरे से निकला, तो क्या देखा? सुकरात अपने कमरे में आईना देख रहे थे! राहगीर बिना किसी प्रतिक्रिया के आगे बढ़ गया! पर दोबारा, तिबारा, राहगीर ने फ़िर से वहीं घटना देखी! अब राहगीर बिना विचार किए नहीं रह सका! सोचने लगा- ' सुकरात इतने कुरूप हैं! फ़िर रोज़- रोज़ इतनी देर तक आईने में क्या निहारते है?' इस विचार का तूफ़ान उसके भीतर करवटे लेने लगा! वह अपने आपको रोक नहीं पाया! सीधा संत सुकरात के कमरे में पहुंच गया!
राहगीर - बुरा न माने, तो एक प्रश्न पूछूं! आप प्रतिदिन इतना समय आईने के आगे खड़े होकर क्या देखते हो? आप तो इतने...
सुकरात - हां, मै अरूप हूं! बदसूरत हूं! लेकिन मै प्रतिदिन इसलिए आईना देखता हूं, ताकि मुझे अपनी कुरूपता का ध्यान रहे!
राहगीर - आप अपनी कुरूपता का स्मरण क्यों रखना चाहते हो? क्या अपनी रूपहीनता देखकर आपके भीतर हीनता पैदा नहीं होती?
सुकरात - नहीं! क्योंकि मै नकारात्मक नहीं सोचता! मेरी कुरूपता तो मुझे बोध कराती हैं!
राहगीर - बोध! कैसा बोध?
सुकरात - यही कि अपने नेक व सुंदर कार्यों से अपनी असुन्दरता को समाप्त कर लूं! उच्च विचार व शुभ कर्म मनुष्य के भीतरी सौंदर्य को निखारते है! यदि भीतरी सौंदर्य पैदा हो गया, तो शरीरी असुंदरता दुःख नहीं देती!
राहगीर संत सुकरात के विचारों से भाव- विभोर हो गया! चरणों में गिरकर प्रणाम किया! उठा और मुड़कर कमरे से बाहर जाने लगा! संत सुकरात का तुरन्त स्वर उभरा- ' सुनो वत्स! तुम भी दर्पण देखा करों!' राहगीर धीमी आवाज़ में बोला- ' जी '!
सुकरात - जानना चाहोंगे, क्यों? क्योंकि तुम अत्यंत रूपवान हो, बहुत सुंदर हो! दरअसल, आईना तुम्हें भी सीख देगा! बताएगा जितना सुंदर तुम्हारा रूप हैं, तुम उतने ही सुंदर कर्म भी करो! बाहरी और भीतरी- दोनों प्रकार के सौंदर्य के स्वामी बनों! भीतरी सौंदर्य के बिना केवल बाह्य सौंदर्य खोखला हैं! अपूर्ण है!
सच में, हम चाहे तो जीवन की हर प्रतिकूलता के बीच स्वयं को सकारात्मक भावो/विचारों से प्रेरित कर सकते हैं! यही आंतरिक सौंदर्य को प्रकट करने का रहस्य हैं! 

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(2) कहानी

सावधान-आप भगवान के कैमरे की नजर में हैं

एक सज्जन की आप बीती
            
हमारे घर के पास एक डेरी वाला है| वह डेरी वाला एसा है कि आधा किलो "घी"में, अगर 'घी' 502ग्राम तुल गया तो 2 ग्राम 'घी, निकाल लेता था।
      एक बार मैं आधा किलो 'घी' लेने गया. उसने मुझे 90 रूपय ज्यादा दे दिये।
मैंने कुछ  देर  सोचा और  पैसे  लेकर निकल लिया।
 मैंने मन में सोचा,कि 2-2 ग्राम से तूने जितना बचाया था,'बच्चू,अब एक ही दिन में निकल गया ।
मैंने घर आकर "अपनी गृहलक्ष्मी"को कुछ नहीं बताया और घी दे दिया।
       उसने जैसे ही 'घी,डब्बे में पलटा आधा 'घी,बिखर गया, मुझे झट से “बेटा चोरी का  माल मोरी में”  वाली  कहावत  याद आ गयी,और साहब यकीन मानीये वो 'घी,  किचन की सिंक में ही गिरा था।
       इस वाकये को कई महीने बीत गये थे। परसों  शाम को मैं  वेज रोल  लेने गया, उसने भी  मुझे  सत्तर रूपय  ज्याद दे दिये, मैंने मन ही मन सोचा  चलो बेटा!!आज फिर चैक करते हैं की क्या वाकई भगवान 'हमें, देखता है।
  मैंने रोल पैक कराये और पैसे लेकर निकल लिया।
 आश्चर्य तब हुआ जब एक रोल अचानक रास्ते में  ही गिर गया,
घर पहुँचा बचा हुआ रोल टेबल पर रखा
 जूस निकालने के लिये अपना
 मनपसंद काँच का गिलासउठाया
अरे यह क्या?गिलास हाथ से फिसल कर टूट गया।
        मैंने हिसाब लगाय करीब-करीब सत्तर में से साठ रूपय का नुकसान
हो चुका था,'मैं,बडा आश्चर्यचकित था। 
    और अब सुनिये ये भगवान तो मेरे पीछे ही पड गया, जब कल शाम को 'सुभिक्षा वाले,ने मुझे  तीस रूपये ज्याद दे दिये। मैंने अपनी धर्म-पत्नी से पूछा क्या कहती हो!
एक ट्राई और मारें।
उन्होने मुस्कुराते हुये कहा–जी नहीं,
और हमने पैसे वापस कर दिये। बाहर आकर हमारी धर्म-पत्नी जी ने कहा
वैसे एक ट्राई और मारनी चाहिये थी।
कहना था कि उन्हें एक ठोकर लगी और वह गिरते-गिरते बचीं 
      मैं सोच में पड गया कि क्या वाकई
भगवान हमें देख रहा है।
      हाँ भगवान हमें हर पल हर क्षण देख रहा है । हम  बहुत  सी  जगह  पोस्टर लगे देखते हैं, "आप  कैमरे की नजर में"हैं।
पर याद  रखना हम हर  क्षण पलप्रतिपल उसकी नजर में हैं।

वो हर पल गलत कार्य करने से पहले
और बाद में भी हमें आगाह करता है।
लेकिन यह समझना न समझना हमारे
विवेक पर निर्भर करता है।

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(3) कहानी

        ईश्वर की शरण में रहने वाला व्यक्ति सदा उन्नतिशील, तनाव मुक्त और आनंदित रहता है।

मनुष्य अल्पशक्तिमान होने से, अपने सारे कार्य स्वयं पूरे नहीं कर सकता। उसे अन्यों से बहुत सी सहायता लेनी पड़ती है। अनेक सांसारिक लोगों की सहायता से वह धीरे धीरे उन्नति करता है। सबसे पहले बचपन में उसे  माता-पिता से सब प्रकार की सहायता मिलती है। भोजन वस्त्र निवास खिलौने नौकर चाकर प्रेम सुरक्षा तथा अन्य भी अनेक प्रकार के साधन उसे    माता-पिता की कृपा और आशीर्वाद से मिलते हैं।
 
 जैसे जैसे वह बड़ा होता जाता है, वैसे वैसे स्कूल कालेज गुरुकुल आदि में उसके गुरुजन विद्या आदि से उसकी सहायता करते हैं। पड़ोसी मित्र सहयोगी सहपाठी भी उसकी बहुत प्रकार से सहायता करते हैं।
  
धीरे-धीरे वह और बड़ा होता जाता है, तथा जीवन में क्या करना चाहिए, कैसे करना चाहिए, अनेक विद्वानों के मार्गदर्शन से वह सीखता जाता है। जितने लोग भी उसकी सहायता करते हैं, उन सब की सहायता सर्वव्यापक सर्वशक्तिमान आनंदस्वरूप परमात्मा करता है। और परमात्मा उस व्यक्ति की भी सहायता करता है, जो बचपन से उन्नति कर रहा है। 

जो व्यक्ति इन सब सहायकों की सहायता लेते हुए, साथ-साथ ईश्वर की शरण भी स्वीकार कर लेता है, ईश्वर को अपना सबसे बड़ा मार्गदर्शक संरक्षक गुरु आचार्य राजा और न्यायाधीश आदि के रूप में स्वीकार करके सब कार्य करता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है। वह सदा उन्नतिशील रहता है, सदा प्रसन्न रहता है, चिंताओं से मुक्त और सदा आनंदित रहता है।
      *जो लोग ईश्वर को नहीं समझते, उसकी कृपा  सहायता और आशीर्वाद को नहीं जानते, वे ईश्वर के आशीर्वाद से वंचित रहते हैं। और संसार में यूं ही भटकते हुए अनेक दुखों को भोगते रहते हैं।

* जैसे छोटी सी मछली पानी की शरण में रहती है, तो विपरीत धारा में भी वह आगे आगे बढ़ती जाती है। परंतु बहुत बड़ा हाथी भी यदि पानी की शरण में नहीं रहता, पानी की धारा की, विपरीत दिशा में चलता है, तो वह धारा विपरीत होने से आगे नहीं बढ़ पाता, बल्कि पानी के साथ ही बह जाता है। तो जैसे मछली, पानी की शरण लेती है, वैसे ही, यदि आप ईश्वर की शरण स्वीकार लेवें, तो आप का भी कल्याण हो जाएगा।